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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

मुनीर, खूकू और अन्यान्य

 

(1)


मुनीर को फाँसी होगी। इस देश में नारी-निर्यातन का ख़ासा बेहतरीन फैसला सुनाया जाता है। मुनीर की फाँसी का इंतज़ाम देखकर, बहुतेरे लोग ऐसी राय बना सकते हैं, लेकिन असल में क्या समूचे देश में औरतों को ऐसा इंसा मिलता है? दबाव में पड़कर सरकार या सरकारी न्यायाधीश इस किस्म के फैसले की तरफ बढ़ तो रहे हैं, लेकिन उन पर पत्र-पत्रिकाओं का दबाव न होता, तो मुझे पक्का विश्वास है कि मुनीर आज खुलेआम घूम रहा होता; लोग-बाग उससे हँस-हँसकर बातें करते, कोई-कोई उसे सलाम भी ठोंकते, वह ठीक-ठाक ढंग से कारोबार कर रहा होता; स्मगलिंग करता और कोई भी उसे 'बुरा' न कहता। देश में ऐसे खूनी-बदमाश धड़ल्ले से घूमते रहते हैं, हम सब उन्हें पहचानते भी हैं, लेकिन इस बारे में सोच-विचार की तकलीफ नहीं उठाते। देश में अनगिनत मुनीर, हँसते-खेलते घूम-फिर रहे हैं और हम उन्हें पहचानते नहीं, ऐसा भी नहीं है।

खूकू के बारे में अख़बारों में काफी सारा बकवास लिखा गया है! लोग खूकू को छिः छिः कर रहे हैं। लेकिन खूकू का कोई कसूर था भला? वह मुनीर के इश्क में पड़ ही सकती थी। इश्क करना या इश्क में पड़ना, कोई गुनाह नहीं है! ख़बरों में यह कहा गया है कि खूकू की उम्र काफी थी, खूकू का पति था; घर-गृहस्थी थी। उसे इश्क में पड़ने की क्या ज़रूरत आ पड़ी? लेकिन...यह भी कोई बात हुई? इश्क करने के लिए क्या कोई सुनिश्चित उम्र होती है? अगर कोई उम्र तय भी हो तो यह सीमा किसने बनाई? उस दिन मैंने शर्म के मारे अपना चेहरा ढाँप लिया था, जिस दिन महिला परिषद की सदस्यों ने कोर्ट के गेट पर खड़े होकर खूकू के लिए फाँसी की माँग की थी! जिसका पति अक्षम और पौरुषहीन हो। जिस पति ने उसे हर बात से वंचित कर रखा हो वह औरत अगर किसी से प्यार कर बैठे और किसी प्रेमी से उसका शारीरिक मानसिक रिश्ता बन जाए, तब किसी को, क्या एतराज हो सकता है? यूँ भी किसी से रिश्ता कायम करने के लिए पति को अक्षम घोषित किया जाए, यह भी मैं नहीं मानती। पति बिल्कुल सक्षम भी हो, फिर भी अगर कोई औरत किसी और से प्यार करने की चाह कर बैठे, तो यह सरासर संभव है! समाज इंसान के प्रति इंसान के प्यार में दीवार क्यों बने? प्यार में दीवार बनने की जिम्मेदारी समाज को किसने दी है? खूकू के साथ मुनीर के रिश्ते को लेकर, देश के लोगों ने इतनी चीख-पुकार क्यों की, यह मेरी समझ से बाहर है। मुनीर ने अपनी बीवी का कत्ल कर डाला। इसके लिए उसे फाँसी होगी। इसमें खूकू का क्या कसूर? खूकू के साथ मुनीर का रिश्ता था, हो ही सकता है! लेकिन इसमें खूकू का तो कोई कसूर नहीं है। मुनीर ने अपनी बीवी को धोखा दिया, क्योंकि उसने खूकू के साथ 'प्यार-मुहब्बत' का खेल तो खेला, मगर उसने उससे व्याह नहीं किया। समूची घटना में सबसे ज़्यादा निर्यातित हुई है खूकू! समूचे देश ने उसके प्यार पर गालियाँ वरसाईं, लानतें भेजीं, उसे जेल में ठूस दिया, खूकू का नाम उसने 'बदचलन' औरत घोषित कर दिया। कुल मिलाकर समूचे देश ने 'खूकू' का ही अपमान करके उसे धज्जी-धज्जी कर डाला। खूकू ने प्यार किया था, इसमें उसने कौन-सा गुनाह कर डाला? इस देश में प्यार करना क्या जुर्म है?

मुनीर को फाँसी होगी, यह भली बात है! यानी इस देश में 'हत्या' पर विचार किया जाता है? यानी इस देश में नारी-निर्यातन के बारे में ऐसा ही सुविचार होता है? हमें क्या अब रास्ता घाट पर हत्यारों के चेहरे नज़र नहीं आएँगे? यह देश क्या शठ और शैतानों से मुक्त हो जाएगा? इस देश में क्या धूर्त बदमाश अब नहीं पैदा होंगे? खूनी? हम सब बखूबी जानते हैं कि आजकल खूनी लोगों का ही राज-पाट है! खूनी लोग ही गद्दी पर आसीन हैं? खूनी लोग ही हमारे सिर पर सवार हैं! सबसे ज़्यादा अधिकार खूनी लोगों के ही हाथों में है।

(2)


अब तक धर्म के नाम पर दनिया में कितने लोगों ने अपनी जान गँवाई है? मझे मालूम है इसकी गिनती करने की मजाल किसी में भी नहीं है! आखिर इंसान के लिए धर्म है या धर्म के लिए इंसान? धर्म के ठेकेदारों ने इस सवाल का कभी, कोई जवाब नहीं दिया। हम तो यह विश्वास करना चाहते हैं कि धर्म इंसानों के लिए है! लेकिन देश के तमाम लोग यह समझाने को आमादा हैं कि इंसान ही धर्म के लिए है चूंकि किसी ज़माने में धर्म का आविष्कार किया गया था। इसलिए धर्म के लिए ही जीवन विसर्जित भी करना होगा; धर्म के लिए अवाध अधर्म भी करना होगा।

तुर्की काफी सुदूर देश है। उस सुदूर देश में अभी कुछ ही दिन पहले कैसा मार्मिक कांड हो गया। तुर्की के सिवास शहर के एक होटल में, कवि-लेखक, जब आपसी विचार-विमर्श में मगन थे, उस वक्त क्रुद्ध जनता ने उस होटल को घेर लिया और होटल में आग लगा दी। आग लगाने की वजह? उस मीटिंग में अज़ीज़ नसीन, नामक एक लेखक मौजूद थे। अज़ीज़ नसीन का गुनाह यह था कि वे धर्म नहीं मानते थे और उन्होंने सलमान रुशदी की किताब के कुछेक ख़ास हिस्सों का अनुवाद किया था। अज़ीज़ नसीन धर्म नहीं मानते थे। यह उनका नितांत निजी मामला था। 'अगर इंसान को यह हक है कि वह धर्म का पालन करे, तो उसे यह हक भी है कि वह धर्म का पालन न करे। अगर आस्तिक होने का हक़ है, तो नास्तिक होने का भी हक़ है। अगर धर्म-प्रचार का हक़ है, तो धर्म-विरोध का अधिकार भी मौजूद है। अज़ीज़ नसीन का अपराध, अदालत में साबित नहीं हो पाया। इसलिए उनके खिलाफ कोई फैसला भी घोषित नहीं हो सका। लेकिन चंद धर्मोन्मादियों ने, उनके नाम फैसला देने के नाम पर, उस होटल को ही जलाकर खाक कर दिया। होटल में आग लगाने की वजह से चालीस लोगों की जान चली गई और डेढ़ सौ लोग घायल हुए। जो लोग आहत या निहत हुए, उन लोगों ने ऐसा कौन-सा गुनाह किया था, जो उन्हें मरना पड़ा? होटल में न जाने कितने ही किस्म के लोग मौजूद होते हैं। होटल में आग लगाकर कुछेक बेकसूर-निरीह लोगों को, बिना सोचे-समझे मार डाला गया, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? धर्म के नाम पर तुर्की में जो हादसा हुआ, उससे क्या तुर्की के सम्मान में चार चाँद लग गए? धर्म के नाम पर अगर कोई होटल जला डाले, इंसान की हत्या कर डाले, उसे जिबह कर डाले, गर्दन की नस काट दे, तो धर्म का गौरव कुछ बढ़ जाता है? मेरी राय में तो इससे गौरव घटता है। धर्म क्या सहनशीलता की हिदायत नहीं देता? धर्म के ये ठेकेदार, शांत-सौम्य, स्थिर, निरुपद्रव क्यों नहीं होते? वे लोग जलाने-फूंकने की चीख-पुकार क्यों मचाते हैं? वे लोग 'खून करो; खत्म करो-' की जल्लादी पुकार क्यों देते हैं? समूची दुनिया में धर्म के नाम पर ध्वंस और रक्तपात का सिलसिला जारी है-इस रक्तपात को रोकने के लिए, आज हर बोधसम्पन्न इंसान को सजग होना चाहिए; क्योंकि अगर हमने आँखें बंद रखीं, तो यह देश भी किसी दिन तुर्की के उस होटल में बदल जाएगा जिस किसी दिन भी अविवेकी और निर्बुद्धि इंसान इस समूचे देश को जलाकर फूक देंगे। उस वक्त अगर हम गला फाड़-फाड़कर भी चीखें-चिल्लाएँ, तो भी क्या सही-सलामत बच सकेंगे।

 

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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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